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Friday 26 October 2012

शब्द-वाण विष से बुझे, मित्र हरे झट प्राण-

  दोहे 

शत्रु-शस्त्र से सौ गुना, संहारक परिमाण ।
शब्द-वाण विष से बुझे, मित्र हरे झट प्राण ।।


हर बाला इक वंश है, फूले-फले विशाल |
होवे देवी मालिनी,  हरी भरी हर डाल ||
 
करते मटियामेट शठ, नीति नियंता नोच ।
जांचे कन्या भ्रूण खलु, मारे नि:संकोच ।।

काँव काँव काकी करे, काकचेष्टा *काकु ।
करे कर्म कन्या कठिन, किस्मत कुंद कड़ाकु ।।
*
दीनता का वाक्य




औरन की फुल्ली लखैं , आपन  ढेंढर  नाय
ऐसे   मानुष   ढेर  हैं,   चलिए  सदा  बराय||

पीड़ा बेहद जाय बढ़, अंतर-मन अकुलाय ।
जख्मों की तब नीलिमा, कागद पर छा जाय । 

*ताली मद माता मनुज, पाय भोगता कोष ।
पिए झेल अवहेलना, किन्तु बजाये जोश ।।
ताड़ी / चाभी / करतल ध्वनि



1 comment:

  1. औरन की फुल्ली लखैं , आपन ढेंढर नाय
    ऐसे मानुष ढेर हैं, चलिए सदा बराय||

    hr doha apne ap me lajbab lga Ravi bhai . Sadar abhar

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